घुंआ, आपको ले जाता है फेफड़ा फेफड़ा कैंसर के नजदीक : डॉ. हर्षवर्धन
- घुंआ, आपको ले जाता है फेफड़ा फेफड़ा कैंसर के नजदीक : डॉ. हर्षवर्धन


 

लखनऊ। राजधानी ही नहीं, पूरे देश में फेफड़े के कैंसर के रोगियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। हर साल करीब 55 हजार नये फेफड़े के कैंसर रोगियों की पहचान होती है, जिनमें से 50 हजार हर साल मर जाते हैं। नये रोगी बढ़ने के कारकों में प्रमुख कारण स्मोकिंग हैं, स्मोकिंग खुद पीने वाले के लिये हानिकारक होती है साथ ही नजदीक मौजूद लोगों (सेकेंड हैंड स्मोकिंग )के साथ ही घर में वा आफिस में कार्य करने वालों (थर्ड हैंड स्मोकर)के लिए भी घातक है। इसलिये बेहतर है कि जो लोग स्मोकिंग करते हैं वो निकोटिन के अन्य विकल्पों का सहारा ले और जो नहीं पीते हैं वो स्मोकिंग करने वालों का साथ छोंड़ दें। यह जानकारी शुक्रवार को निजी होटल में मेडिकल आंकोलॉजिस्ट डॉ.हर्षवर्धन अत्रेय ने दी। 

 

अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेस्यलिस्ट हास्पिटल के डॉ.अत्रेय ने बताया कि फेफड़ों में धुंआ प्रवेश करना ही फेफड़ों को प्रभावित करने का मुख्य कारण है। स्मोकिंग करने वालों के साथ मौजूद व्यक्ति सेकेंड हैंड स्मोकर होता है क्योंकि बिना सिगरेट पीये ही वह स्मोकर के द्बारा फेंके गये घुंए को सांस के साथ पैसिव स्मोकिंग करता है। इसके अलावा थर्ड हैंड स्मोकर भी होते हैं, थर्ड हैंड स्मोकर , सिगरेट पीने वाले के घर वाले या आफिस में कार्यरत लोग हेाते हैं, जो स्मोकिंग के दौरान साथ में नहीं होते हैं, मगर स्मोकिंग के घुंए के पार्टिकिल जो घर में कुर्सी मेज, पर्दे और दीवारों पर चिपक जाते हैं और हाथ व खाद्य पदार्थो के साथ उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इनमें भी फेफड़े के कैंसर की संभावना होती है। इसलिये आम जन से अपील करता हूॅ कि स्मोकिंग को त्याग दे, प्रयास करें कि 4० वर्ष की उम्र के पहले ही छोंड़ दे, क्योंकि 4० के बाद खतरा बढ़ जाता है। फेफड़े के कैंसर रोगियों में देखा गया है कि 85 से 87 प्रतिशत रोगियों की हिस्ट्री स्मोकिंग ही होती है। अधिकांश फेफड़े के कैंसर रोगियों की मृत्यु होने के सवाल पर डॉ.हर्षवर्धन ने बताया कि फेफड़े के कैंसर और टीबी आदि अन्य बीमारियों के लक्षण सामान्य होते हैं। लक्षण मिलते भी हैं तो लोग और चिकित्सक खांसी व टीबी आदि की दवाएं देकर बीमारी को नजर अंदाज करते हैं। वर्तमान में 8० प्रतिशत रोगी चतुर्थ स्टेज में कैंसर पहुंचने के बाद विश्ोषज्ञ के पास पहुंचते हैं। जबकि सेकेंड स्टेज तक के रोगियेां को सर्जरी द्बारा बचाया जा सकता है। 

 जांच व इला

 

इलाज में टारगेट थ्ोरेपी के अलावा टेबलेट में किमोथ्ोरेपी की दवाएं उपलब्ध हैं। डॉ.आत्रेय ने बताया कि खांसी में कफ के साथ खून आये तो तुरंत विश्ोषज्ञ से कैंसर की जांच करानी चाहिये, जांच में लो डोज में सीटी स्कैन करानी चाहिये, लो डोज में रेडियेशन का खतरा कम होता है और परिणाम की पुष्टि भी हो जाती है। 


लखनऊ। राजधानी ही नहीं, पूरे देश में फेफड़े के कैंसर के रोगियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। हर साल करीब 55 हजार नये फेफड़े के कैंसर रोगियों की पहचान होती है, जिनमें से 5० हजार हर साल मर जाते हैं। नये रोगी बढ़ने के कारकों में प्रमुख कारण स्मोकिंग हैं, स्मोकिंग खुद पीने वाले के लिये हानिकारक होती है साथ ही नजदीक मौजूद लोगों (सेकेंड हैंड स्मोकिंग )के साथ ही घर में वा आफिस में कार्य करने वालों (थर्ड हैंड स्मोकर)के लिए भी घातक है। इसलिये बेहतर है कि जो लोग स्मोकिंग करते हैं वो निकोटिन के अन्य विकल्पों का सहारा ले और जो नहीं पीते हैं वो स्मोकिंग करने वालों का साथ छोंड़ दें। यह जानकारी शुक्रवार को निजी होटल में मेडिकल आंकोलॉजिस्ट डॉ.हर्षवर्धन अत्रेय ने दी। 

 

अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेस्यलिस्ट हास्पिटल के डॉ.अत्रेय ने बताया कि फेफड़ों में धुंआ प्रवेश करना ही फेफड़ों को प्रभावित करने का मुख्य कारण है। स्मोकिंग करने वालों के साथ मौजूद व्यक्ति सेकेंड हैंड स्मोकर होता है क्योंकि बिना सिगरेट पीये ही वह स्मोकर के द्बारा फेंके गये घुंए को सांस के साथ पैसिव स्मोकिंग करता है। इसके अलावा थर्ड हैंड स्मोकर भी होते हैं, थर्ड हैंड स्मोकर , सिगरेट पीने वाले के घर वाले या आफिस में कार्यरत लोग हेाते हैं, जो स्मोकिंग के दौरान साथ में नहीं होते हैं, मगर स्मोकिंग के घुंए के पार्टिकिल जो घर में कुर्सी मेज, पर्दे और दीवारों पर चिपक जाते हैं और हाथ व खाद्य पदार्थो के साथ उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इनमें भी फेफड़े के कैंसर की संभावना होती है। इसलिये आम जन से अपील करता हूॅ कि स्मोकिंग को त्याग दे, प्रयास करें कि 4० वर्ष की उम्र के पहले ही छोंड़ दे, क्योंकि 4० के बाद खतरा बढ़ जाता है। फेफड़े के कैंसर रोगियों में देखा गया है कि 85 से 87 प्रतिशत रोगियों की हिस्ट्री स्मोकिंग ही होती है। अधिकांश फेफड़े के कैंसर रोगियों की मृत्यु होने के सवाल पर डॉ.हर्षवर्धन ने बताया कि फेफड़े के कैंसर और टीबी आदि अन्य बीमारियों के लक्षण सामान्य होते हैं। लक्षण मिलते भी हैं तो लोग और चिकित्सक खांसी व टीबी आदि की दवाएं देकर बीमारी को नजर अंदाज करते हैं। वर्तमान में 80 प्रतिशत रोगी चतुर्थ स्टेज में कैंसर पहुंचने के बाद विश्षज्ञ के पास पहुंचते हैं। जबकि सेकेंड स्टेज तक के रोगियेां को सर्जरी द्बारा बचाया जा सकता है। 

 जांच व इलाज :

इलाज में टारगेट थ्रेपी के अलावा टेबलेट में किमोथ्रेपी की दवाएं उपलब्ध हैं। डॉ.आत्रेय ने बताया कि खांसी में कफ के साथ खून आये तो तुरंत विश्षज्ञ से कैंसर की जांच करानी चाहिये, जांच में लो डोज में सीटी स्कैन करानी चाहिये, लो डोज में रेडियेशन का खतरा कम होता है और प1रिणाम की पुष्टि भी हो जाती है।