लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) केंद्रीय कैबिनेट द्वारा पारित नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को देश स्तर पर लागू करने की केंद्र की कोशिश के खिलाफ मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को देशव्यापी प्रतिरोध दिवस मनाएगी।
यह जानकारी देते हुए पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने रविवार को कहा कि नागरिकता संशोधन बिल के माध्यम से आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के एजेण्डे को पिछले दरवाजे से लागू कराने की कोशिश की जा रही है। यह संविधान विरोधी, गरीब विरोधी व साम्प्रदायिक विधेयक है।
उन्होंने कहा कि असम में लागू किया जा रहा एनआरसी मानवीय आपदा का रूप ले चुका है, जहां 19 लाख से भी ज्यादा लोगों पर नागरिकता विहीन होने की तलवार लटक रही है। इनमें से कइयों की असम के डिटेंशन कैम्पों में मौतें हो चुकी हैं। अब एनआरसी रूपी आफत को देश भर में फैलाने की केंद्र की योजना है। इसके लिए असम की तर्ज पर डिटेंशन कैम्प पूरे देश में बनेंगे, जहां संवैधानिक अधिकारों से महरूम किये गए लोगों को नारकीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया जाएगा।
माले नेता ने कहा कि नागरिकता संशोधन बिल में मात्र तीन पड़ोसी देशों - पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान - के गैर-मुस्लिम छह धर्मों के उत्पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए धार्मिक व क्षेत्रीय पहचान को आधार बनाया गया है, जो देश के संविधान व धर्मनिरपेक्षता पर हमला है। इसका असल उद्देश्य तो भारतीय नागरिकता की परिभाषा में से मुसलमानों को बाहर करना है।
उन्होंने कहा की एनआरसी के कारण हर भारतीय की नागरिकता खतरे में पड़ गई है। यह गरीबों की नागरिकता पर हमला करने वाला एक हथियार है। जो गरीब अपनी गरीबी का सबूत तक नहीं दे पाने के चलते बीपीएल सूची तक में जगह नहीं पाते वे भला इस बात के कागजात और सबूत कहां से लायेंगे जिससे प्रमाणित हो सके कि उनके पूर्वज 1951 में भारत के नागरिक थे।
माले राज्य सचिव ने कहा कि यह अलग बात है कि असम में लागू एनआरसी भाजपा पर ही भारी पड़ गया है, क्योंकि इसके जरिये जो साम्प्रदायिक विभाजन वह हासिल करना चाहती थी, उसके उलट एनआरसी के खिलाफ वहां हिन्दुओं व मुसलमानों की एकता बन गयी है। भाजपा ने खुद इस बात को माना है कि पश्चिम बंगाल में हाल के उपचुनावों में एनआरसी के खिलाफ बनी एकजुटता के चलते उसे वोटों का नुकसान हुआ।
माले नेता ने कहा कि इसीलिए अब मोदी-शाह की जोड़ी सोच रही है कि नागरिकता संशोधन बिल लाकर एनआरसी के खिलाफ बनी एकता को तोड़ा जा सकता है, क्योंकि जिन हिन्दुओं के नाम नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह जायेंगे उनसे कहा जायेगा कि नागरिकता संशोधन बिल के रास्ते से उन्हें एनआरसी में शामिल कर लिया जायेगा। इसलिए एनआरसी से पहले नागरिकता संशोधन बिल को पारित करने की जल्दी है।
राज्य सचिव ने कहा कि 'गैरकानूनी शरणार्थियों' जैसी कोई समस्या अपने देश मे है ही नहीं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भारत में भारी पैमाने पर 'घुसपैठिये' घुसे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सही बात यह है कि मोदी-शाह की सरकार ने अर्थव्यवस्था, नौकरियों और पूरे समाज को तबाह कर दिया है, जिसके कारण देश के लोग बेरोजगारी और वंचना से बुरी तरह परेशान हैं, न कि 'बगैर कागजात के यहां आये घुसपैठियों' की वजह से। इसीलिए भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को बचाने के लिए नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता संशोधन बिल को हर हाल में रोकने की जरुरत है।